साधारणतया, लेख या निबन्ध जीवन के सार्वजनिक मान्यताओं और धारणाओं को संक्षिप्त रूप से प्रकट करते हैं क्यों कि पढ़नेवाले उसे सुगमतापूर्वक स्वीकार और सम्मिलित इसलिए करते हैं क्यों कि उनके लिए वे यथार्थ हैं, यह न समझते हुए कि यदि संसार भ्रामिक है जैसे ऋषियों ने घोषित किये हैं, वे किसी भी तरह यथार्थ या सत्य नहीं हो सकते। यहाँ जो भी लेख प्रस्तुत किये गये हैं, वे गहराई से हर मान्यता की प्रामाणिकता का परीक्षण करते हैं क्यों कि मान्यतायें, मनुष्य को स्वतन्त्रित रूप से जीने के बजाय, उसे बन्धन में बाँध रखते हैं। डॉ:शंकर के लेख को छापने के लिए साहस चाहिए क्यों कि सशर्त मन की प्रथा को छोट न पहुँचाने का भय रहता है और साथ-साथ यह भी समझना कि यथार्थ की लोकप्रिय भ्रांत धारणा के सुरक्षित-घरों में शरण लेना समझदारी नहीं क्यों कि वह ज्ञानोदय को अपने आप प्रदर्शित करने में रोकता है।
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